भारत पर अमेरिकी टैरिफ: कारण, प्रभाव और समाधान
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India US Trade Relations 2025 by Ravi Kumar Manjhi |
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नया तनाव: भारत पर अमेरिकी टैरिफ और इसके दूरगामी प्रभाव
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में हाल ही में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। अमेरिका ने भारत और ब्राज़ील पर 50% तक का अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिसका सीधा कारण भारत का रूस से कच्चा तेल खरीदना और रक्षा उपकरण आयात जारी रखना बताया गया है। यह निर्णय न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि कूटनीतिक संबंधों के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) स्वयं रूसी ऊर्जा का आयात करते हुए भी भारत की ऊर्जा नीति की आलोचना कर रहे हैं।
भारत ने इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए कहा है कि उसकी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विषय है और 1.4 अरब नागरिकों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तेल आयात पूरी तरह से बाजार आधारित कारकों पर निर्भर है।
अमेरिका के टैरिफ लगाने के मुख्य कारण
• उच्च टैरिफ और गैर-शुल्कीय अवरोध : अमेरिका का आरोप है कि भारत दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि क्षेत्र में ऊँचे आयात शुल्क और जटिल नियमों के ज़रिए बाजार पहुँच को सीमित करता है।
• रूसी तेल व रक्षा उपकरणों की खरीद : भारत की रूस से ऊर्जा और सैन्य उपकरण खरीद को अमेरिका अपने प्रतिबंधों के प्रवर्तन में बाधा मानता है।
• व्यापार घाटा : अमेरिका का भारत के साथ लगभग 45 अरब डॉलर का स्थायी व्यापार घाटा है, जिसे कम करने के लिये यह टैरिफ रणनीति अपनाई गई है।
• रुकी हुई व्यापार वार्ताएँ : कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भारत की सतर्कता के चलते, दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर सहमति नहीं बन सकी है।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंध: एक झलक
• सबसे बड़ा साझेदार : वर्ष 2024-25 में अमेरिका लगातार चौथे साल भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा, द्विपक्षीय व्यापार $131.84 बिलियन तक पहुँचा।
• कृषि व्यापार में वृद्धि : 2025 की पहली छमाही में अमेरिका से कृषि आयात 49.1% और अमेरिका को कृषि निर्यात 24.1% बढ़ा।
• FDI का स्रोत : 2023-24 में अमेरिका से भारत में $4.99 बिलियन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया।
• SME सहयोग : 2024 में दोनों देशों ने MSME क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिये MoU पर हस्ताक्षर किए।
अमेरिकी टैरिफ का भारत पर संभावित असर
• तेल आयात पर दबाव : भारत अपने कच्चे तेल का 88% आयात करता है, जिसमें 35% से अधिक रूस से आता है। अमेरिकी दबाव से ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की चुनौती बढ़ेगी।
• निर्यात क्षेत्रों पर चोट : अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात के लगभग 10% (करीब $87 बिलियन) पर सीधा असर पड़ेगा। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, वस्त्र, रत्न-आभूषण और ऑटो पार्ट्स सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
• GDP और रोजगार पर असर : एशियाई विकास बैंक ने GDP वृद्धि अनुमान 6.7% से घटाकर 6.5% कर दिया है। श्रम-गहन क्षेत्रों, खासकर वस्त्र और आभूषण उद्योग में रोजगार घटने की संभावना है।
• प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी : वियतनाम, इंडोनेशिया और जापान जैसे देशों की तुलना में भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो सकते हैं, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है।
• राजनयिक तनाव : यह निर्णय भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं में गतिरोध बढ़ा सकता है और भविष्य के समझौतों को और अनिश्चित बना सकता है।
• वित्तीय बाजार पर प्रभाव : घोषणा के बाद निर्यात-केंद्रित 40 से अधिक भारतीय कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई।
भारत पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने की रणनीतियाँ
• वार्ता में तेजी : अमेरिका के साथ अतिरिक्त दौर की व्यापार वार्ता तय की गई है, ताकि निष्पक्ष और पारस्परिक लाभकारी समाधान निकाला जा सके।
• निर्यात बाजारों में विविधता : यूरोपीय संघ, खाड़ी देशों, EFTA और पूर्वी एशिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर तेजी से काम किया जा रहा है।
• घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता : संरचनात्मक सुधार, नवाचार और मूल्य शृंखला में ऊपर बढ़ने पर जोर, ताकि टैरिफ के बावजूद भारतीय उत्पाद आकर्षक बने रहें।
• कमजोर क्षेत्रों का समर्थन : वस्त्र, ऑटो पार्ट्स, रत्न-आभूषण और MSME क्षेत्रों के लिये लक्षित सब्सिडी, निर्यात ऋण और विपणन सहायता।
• ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण : मध्य पूर्व और अफ्रीका से तेल आयात बढ़ाकर रूस पर निर्भरता कम करना और सतत ऊर्जा निवेश को प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की भूमिका को भी प्रभावित करेगा। भारत के लिये यह समय नीतिगत लचीलापन दिखाने, नए साझेदार खोजने और घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने का है, ताकि वह बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों में अपने आर्थिक हित और रणनीतिक स्वायत्तता दोनों को सुरक्षित रख सके।
लेखक: रवि कुमार माँझी
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ReplyDeleteThank You.
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